दिल्ली के सराएँ काले खां बस स्टैंड का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक रखा गया

Last Updated: Dec 10, 2024, 11:05 AM IST Mohd. Faisal

Sarai Kale Khan: दिल्ली के बस स्टैंड सराएँ काले खां का नाम बदल कर बिरसा मुंडा रख बिरसा मुंडा चौक रख दिया है इसका एलान सहर के मिनिस्टर मनोहर लाल खट्टर किया है और अमित शाह ने दिल्ली में ये लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा है और इसकी पुस्टि करते हुए देश के प्रधान मंत्री मोदी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर ट्वीट करके लोगों को x.com के माध्यम से बताया है जल्द ही बस स्टैंड के पास बड़ा चौक को इंटरस्टेट बस टर्मिनस (ISBT) को  भगवान बिरसा मुंडा  जी के नाम से बिरसा मुंडा चौक जाना जाएगा ये कार्यक्रम बसेरा उद्यान में संपन्न हुआ और इसमें अमित शाह भी मौजूद थे

काले खां: सूफी संत और ऐतिहासिक शख्सियत

काले खां एक प्रसिद्ध सूफी संत थे, जिनके नाम पर दिल्ली के एक इलाके का नाम “सराय काले खां” रखा गया है। यह इलाका दक्षिण-पूर्वी दिल्ली जिले में स्थित है और इसके आस-पास के क्षेत्र जैसे निजामुद्दीन, जंगपुरा, खिजराबाद, जंगपुरा एक्सटेंशन और लाजपत नगर भी हैं। “सराय” शब्द उस समय की सड़कों पर स्थित विश्राम स्थल को दर्शाता था, जहां यात्री कुछ समय आराम करते थे। दिल्ली में आने वाले लोग इस स्थान पर रुककर अपनी यात्रा फिर से जारी रखते थे।काले खां 14वीं शताब्दी के एक सूफी संत थे और शेर शाह सूरी के शासनकाल के समकालीन थे। उनकी मजार इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास स्थित है। इसके अलावा, औरंगजेब के समय में भी एक और काले खां थे, जो उसके प्रमुख सैन्य कमांडर थे और कई युद्धों में औरंगजेब के साथ सम्मिलित हुए थे।

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बिरसा मुंडा: आदिवासी नायक और स्वतंत्रता सेनानी

बीरसा मुंडा (1875–1900) एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, आदिवासी नेता और धर्म गुरु थे। वे झारखंड के मुंडा जनजाति से थे और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया।

बीरसा मुंडा ने उलगुलान (1899–1900) विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन और जमींदारों के अत्याचारों का विरोध करना था। उनका नारा “अबुआ राज, बिरसा राज” आदिवासी समाज में एक नया उत्साह और एकजुटता लाया। उन्होंने आदिवासी संस्कृति, परंपराओं और धर्म की पुनर्स्थापना की बात की।

1900 में बीरसा मुंडा की गिरफ्तारी के बाद उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गई, लेकिन उनका योगदान आज भी जीवित है। उनका संघर्ष आदिवासी अधिकारों की लड़ाई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अहम हिस्सा बन गया।

उनकी जयंती (15 नवम्बर) झारखंड में राज्य दिवस के रूप में मनाई जाती है, और उन्हें आदिवासी समुदाय का महान नेता और भारत का राष्ट्रीय नायक माना जाता है।

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